चुनावी साल में चढ़ा जिले का राजनीतिक तापमान, कवर्धा भाजपा के जय और वीरू को अलग करने कौन चल रहा सियासी चाल, पढ़िए झंडा विवाद के साइड इफेक्ट्स

 


संजय यादव, द फायर न्यूज

Mo- 9755419813

वर्ष 2023 चुनावी साल है. जिसे लेकर सभी राजनीतिक दल के नेता एक बार फिर मैदान में उतरने कमर कस चुके हैं. कबीरधाम जिले की अगर बात करें तो यहां दो विधानसभा है. एक कवर्धा और दूसरा पंडरिया. जिसमें कवर्धा विधानसभा पर न केवल जिले की बल्कि प्रदेश व देश - भर के नेताओं की निगाहें टिकी हुई है. यहां इस बार का चुनावी माहौल सुर्खियों में रहेगा और हार- जीत, कांग्रेस व बीजेपी दोनों प्रमुख दलों के लिए सिर फुटौव्वल महत्व रखेगा. वहीं विधानसभा पंडरिया की स्थिति जनता से लेकर जन प्रतिनिधि व विभागीय अमले अच्छी तरह जानते है कि वहां क्या माहौल है इसलिए उस पर बात करना अभी उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है.


आज बात कवर्धा की करेंगें. कवर्धा की सियासत की करेंगे. जहां पिछले चुनाव में प्रदेश के दिग्गज मंत्री मोहम्मद अकबर 60 हजार से ज्यादा मतों से विजयी हुए हैं.‌ वैसे तो मोहम्मद अकबर की छवि चुनाव के पहले भी एक सुलझे हुए नेता के तौर पर रही है. चुनाव जीतने के बाद भी विधानसभा व जिले में विकास कार्यों को लेकर मंत्री मोहम्मद अकबर को गंभीरता से देखा जाता है. लेकिन झंडा विवाद के बाद से मंत्री मोहम्मद अकबर की जिस तरह की किरकीरी हुई यह भी जग जाहिर है. 

इसके बावजूद मंत्री मोहम्मद अकबर जिले में लगातार तूफानी दौरा कर रहे हैं और गांव गांव में विकास तथा लोगो को कांग्रेस में शामिल करने का अभियान छेड़े हुए है. इधर हाल ही में लोहारा और कवर्धा में पार्षद की चुनाव जीतने के बाद हौसले बुलंद नज़र आ रहे है. वहीं दूसरी ओर इस साल उनके विजय रथ को रोकने सरकार के खिलाफ मुखर होकर सड़क पर संघर्ष करने वाले विजय शर्मा और कैलाश चंद्रवंशी भी डटे हुए हैं और सत्ता पक्ष की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं.


झंडा विवाद प्रकरण के बाद दोनों नेताओं के ऊपर एक्ट्रोसिटी लगना भी सियासत की नाटकीय कहानी को बयां करती है.‌ इससे कहा जा सकता है कि प्रतिद्वंद्वियों के हौसले को नेस्तनाबूत करने में मंत्री मोहम्मद अकबर को महारत हासिल है. मगर कवर्धा बीजेपी में जय और वीरू की जोड़ी अर्थात विजय शर्मा व कैलाश चंद्रवंशी भी  कुछ कम नहीं है। चाहे वह सत्ता पक्ष की नाकामियों को उजागर करने की बात हो या फिर किसानों और गरीबों के लिए आंदोलन करने का विषय हो हर मोर्चे पर सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ते.

इधर झंडा विवाद का जिन्न 1 वर्ष बाद फिर बाहर आया है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि पुलिस प्रशासन द्वारा झंडा विवाद प्रकरण में 70 लोगों की जमानत में से एक मात्र कैलाश चंद्रवंशी की जमानत को खारिज करने न्यायालय में आवेदन लगाया गया. जहां न्यायालय ने पुलिस की मंशा पर पानी फेर दिया और आवेदन को खारिज कर दिया.मगर सह और मात की खेल चुनावी वर्ष में कहा रुकने वाली है पुलिस प्रशासन का आवेदन खारिज होने के बाद विगत दिनों कैलाश चंद्रवंशी के भाई के मेडिकल स्टोर में छापा भी पड़ा और अब कैलाश चंद्रवंशी को 6 जिलों से जिला बदर करने की अनुसंशा से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह कोई प्रशासनिक कार्रवाई नहीं बल्कि राजनीतिक वाहवाही है.

बताया जा रहा है कैलाश चंद्रवंशी को जिला बदर करने जिन 7 FIR को आधार बनाया गया है वह सभी आंदोलन में दर्ज FIR है जिनमें किसानों के धान विक्रय हेतु कलेक्टोरेट गेट पर 9 दिन और 8 रात तक नगाड़ा आंदोलन, गन्ना भुगतान और किसानों की मांगों को लेकर जोराताल चौक में चक्काजाम, नेशनल हाइवे से शराब दुकान हटाने, झंडा विवाद प्रकरण और ग्रामीणों के साथ राशन कार्ड बनवाने की समस्या को लेकर जिला खाद्य कार्यालय में हुए विवाद में दर्ज FIR को आधार बनाया गया है. जबकि किसी भी व्यक्ति के खिलाफ जिला बदर जैसी कार्यवाही के लिए आदतन अपराधिक रिकार्ड आवश्यक है लेकिन यहां सभी प्रकरणों की कोर्ट में सुनवाई लंबित होने और 7 प्रकरणों में से एक प्रकरण में दोष मुक्त होने के बाद भी कैलाश चंद्रवंशी की जिला बदर के लिए अनुसंशा माथा पीटने जैसा मालूम पड़ रहा है.वैसे देखा जाए तो इन आंदोलनों में हजारों लोगों ने भाग लिया था और सैंकड़ों पर एफआईआर हुए हैं मगर पुलिस प्रशासन द्वारा व्यक्ति विशेष कैलाश चंद्रवंशी की जमानत रद्द करने आवेदन लगाना और जिला बदर करने की अनुशंसा करना जनमानस के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है.

बहरहाल देखना यह होगा कि इस चुनावी साल में राजनीतिक दलों के साथ साथ उनके नेताओं के और क्या - क्या रंग देखने मिलेंगे. तब तक के लिए जय जोहार. नमस्कार.


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