युवा कथक नर्तक सचिन कुम्हरे ने साबित कर दिया कि बीहड़ जंगलों के बीच भी जन्म ले सकता है कथक नृत्य "सचिन कुम्हरे बायो ग्राफी "प्रकृति , संस्कृति और संघर्ष




कवर्धा:-सचिन कुम्हरे कबीरधाम जिले में कथक नृत्य के क्षेत्र में वर्तमान में उभरता हुआ नाम है जिनकी कला आज से 23 वर्ष पूर्व कबीरधाम जिले का एक ऐसा गांव जहां न कोई शास्त्रीय संगीत के जानकार और न ही कोई संगीतज्ञ है ऐसे घने जंगलों के बीच तहसील रेंगाखार कला के क्षेत्र में आने वाला गांव समनापुर जंगल में हुआ सचिन की कला ने उस समय जन्म लिया जब गांव में बिजली या अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण तक ठीक से उपलब्ध नहीं था संयोग से पिता जी के शासकीय कर्मचारी होने के कारण घर में एक छोटा टी. वी . उपलब्ध था सचिन कुम्हरे के पिता विशंभर दयाल कुम्हरे पेसे से एक शिक्षक थे पिता के साथ साथ पूरे परिवार और अन्य रिश्तेदारों ने भी सचिन को नृत्य के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया शुरुआती दौर में सचिन के साथ पिता को भी लोगो से कई तानो का सामना करना पड़ा लोगों को उस समय सचिन की कला सिर्फ नाच गम्मत ही लगता था गांव के लोग संगीत शिक्षा से अधिक स्कूली शिक्षा को महत्व देते थे गांव में कोई नृत्य गुरु नहीं होने के कारण सचिन ने टीवी से ही देख कर नृत्य करना प्रारंभ कर दिया उस समय अधिक ज्ञान नहीं होने के कारण कथक, भरतनाट्यम, ओड़िशी आदि नृत्यों का सही ज्ञान नहीं था और सचिन इन सभी नृत्यों को बड़े ही आनंद से किया करता था सचिन की प्रंभिक स्कूली शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल में हुई आठवी तक पढ़ने के बाद आगे की शिक्षा कवर्धा के सरस्वती शिशु मंदिर से अर्जित किया ! 

!! कथक नर्तक विशाल कृष्ण को देखकर मिली कथक नृत्य की प्रेरणा!!


सचिन को कथक नृत्य सिखने की प्रेरणा बनारस घराने के अंतररा्ट्रीय कथक नृत्यांगना कथक क्वीन सितारा देवी जी के पोते तथा नटराज गोपी किशन महाराज जी के भतीजे श्री विशाल कृष्ण के चमत्कारी कथक नृत्य को देखकर मिला उन दिनों खजुराहो नृत्य समारोह में श्री विशाल कृष्ण जी का कथक नृत्य का प्रस्तुति हो रहा था विशाल कृष्ण जी का स्वरूप ऐसा लग रहा था मानो स्वयं भगवान कृष्ण खजुराहो के मंच पर अपना नृत्य दिखा रहे हों उनका स्वरूप अति मनमोहक था जब विशाल कृष्ण जी ने थाली के ऊपर चढ़कर ततकार किया तो वह नृत्य सचिन को बहुत प्रभावित किया और तब से सचिन ने निश्चय किया कि मुझे यही नृत्य करना है और सचिन कवर्धा अा गया कवर्धा आने के बाद शहर में स्थित शारदा संगीत महाविद्यालय में प्रवेश लिया किन्तु प्रवेश के लिए भी सचिन को संघर्ष करना पड़ा महाविद्यालय के नृत्य विभाग में सिर्फ लड़कियां ही थी जिसके कारण सुरु में सचिन को प्रवेश नहीं मिला किन्तु अंत में सचिन के कला और साधना को देख नृत्य शिक्षिका को सचिन का प्रवेश लेना ही पड़ा लेकिन संघर्ष अब भी समाप्त नहीं हुआ था सचिन के गुरु ने सिर्फ एक ही शर्त पर प्रवेश लिया वह यह था कि पहले तुम साबित करो कि तुम कथक के लिए बने हो और तुम इसे सच्ची निष्ठा और ईमानदारी के साथ निभाओगे यह सुन सचिन कथक नृत्य के प्रति सम्पूर्ण रूप से समर्पित हो गया और सात , आठ घण्टे के रियाज़ ने वो दिन भी ला दिया जब सचिन के गुरु ने सचिन को अपने शिष्य के रूप में स्वीकारा और गंडा बांध दिया इस प्रकार सचिन की प्रथम गुरु श्रीमती दीपा रंगारी जी हुई और कथक नृत्य की वास्तविक प्रारंभिक शिक्षा प्रारंभ हुई सुरुवाती शिक्षा के दौरान से ही सचिन को मंच प्रदर्शन पर विशेष रुचि था और गुरु की आज्ञा और कठिन साधना पाकर सचिन ने अल्प आयु में ही मंच प्रदर्शन प्रारंभ कर दिया किन्तु यह सब कवर्धा शहर के लिए एकदम नया था सचिन को एक ओर मंच प्रदर्शन की खुशी थी तो दूसरी ओर लोगो के तानो का घेरा था कुर्ता पहने पुरुष के अंग में भी लोगो को एक स्त्री की लचकती कमर ही दिखाई देता था सचिन ने लोगो के इसी तानो को अपना बल बनाया और रोज के तानो का जावाप अपनी कठिन साधना से दिया धीरे धीरे सचिन की प्रसिद्धि जिले से निकलकर बाहर तक जाने लगी देश के राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचो की सफल प्रस्तुतियों ने लोगों के मुंह पर चुप्पी बांध दी और सचिन के नृत्य से प्रेरित होकर महविद्याल में अन्य पुरुष छात्रों ने कथक नृत्य में प्रवेश लिया इस प्रकार सचिन कबीरधाम जिले में प्रथम कथक नर्तक होने की पदवी अर्जित कर लिया l 


""दुख और संघर्ष ""

वर्ष 2017 की घटना ने सचिन के जीवन में एक नया मोड़ ले लिया 31 दिसंबर की रात सचिन के जीवन में दुखो का मानो पहाड़ टूट पड़ा उस दिन अचानक से हृदय की गति रुकने के कारण सचिन के पिता का आकस्मित निधन हो गया पिता के निधन के बाद पूरे परिवार मां बिमला कुम्हरे एवं छोटी बहन संतोषी कुम्हरे की जिम्मेदारी अल्प आयु में ही सचिन के कंधो में अा गया इन दिनों खुद की पढ़ाई बहन की पढ़ाई मां का देखभाल बहुत ही मुश्किल हो रहा था तुरंत में माताश्री को पेंसान लागू ना होने के कारण आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी तब सचिन ने अपने पढ़ाई के साथ ही साथ शहर के एक निजी स्कूल में दो वर्षों तक सेवा देना प्रारंभ किया पिता के निधन के बाद छोटे चाचा अनिल कुम्हरे मंझले दादा शिवप्रसाद कुम्हरे बड़े भाई सुखदेव ने सचिन का हाथ थामा और आगे की शिक्षा के लिए प्रेरित किया सचिन के कठिन परिश्रम को देख सभी रिश्तेदारों ने भी पूरा साथ दिया और आज भी उसकी साधना को बल प्रदान कर रहे हैं कवर्धा से माध्यम अंतिम तक चार वर्ष शिक्षा अर्जित कर सचिन अपने स्नातक शिक्षा हेतु इंदिरा कला संगीत विश्व विद्यालय खैरागढ़ में प्रवेश लिया वहां डॉ . प्रोफेसर शिवाली सिंह बैस सचिन के दूसरे गुरु के रूप में मिली सचिन ने गुरु डॉ . प्रोफेसर शिवाली सिंह बैस जी से विसारद तक शिक्षा प्राप्त किया और वर्तमान में उन्हीं से कथक नृत्य में स्नातक की शिक्षा प्राप्त कर रहा है


""मंचो की यात्रा एवं उपलब्धियां""

शिक्षा के दौरान ही सचिन ने मंचो की यात्रा प्रारंभ कर दिया सचिन की कला और साधना को देख राज्य ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी नृत्य प्रस्तुतियों के लिए आमंत्रित किया जा रहा है साथ ही साथ सचिन को उसके प्रतिभा के सम्मान के लिए विभिन्न सम्मानों से भी सम्मानित किया गया है छत्तसगढ़ के अतिरिक्त मध्यप्रदेश, ओडिशा, झारखंड, उत्तराखंड, पटना, बिहार, पंजाब, गोवा आदि राज्यो में सचिन की नृत्य यात्रा पूर्ण हो चुकी है आदि महोत्सव, रंग महोत्सव, भारत संस्कृति उत्सव, भारत नृत्य उत्सव, भोरमदेव महोत्सव, कार्निवल फेस्टिवल, नृत्य निपुर्णा उत्सव आदि महोत्सव में सचिन अपनी सफल प्रस्तुति दे चुका है साथ ही सचिन को भारतीय कलाश्री रत्न सम्मान, आम्रपाली सम्मान, भारत संस्कृति सम्मान , नृत्य सिरोमणी सम्मान, नृत्य निपुरना सम्मान और अन्य कई सम्मान प्राप्त हो चुके हैं सचिन कथक नृत्य के रायगढ़ घराने की ओर अधिक प्रभावित है और आगे चलकर भी रायगढ़ घराने का ही निर्वाह करना चाहता है रायगढ़ घराने के बोलो पर सचिन अधिक रुचि रखता है और अपने नृत्य प्रदर्शन में भी रायगढ़ घराने के बोलो को सम्मिलित करता है आगे भविष्य में भी सचिन रायगढ़ घराने के बोलो के ऊपर पीएचडी करने की इच्छा रखता है सचिन अपने जीवन में नृत्य को सर्वोपरि मानते हैं और नृत्य को सदा सर्वोच्च स्थान पर रखते हैं सचिन को नृत्य से इतना अधिक लगाव है कि वे खुद कहते हैं मैं पहले सिर्फ नृत्य करता था लेकिन अब नृत्य से प्यार करता हूं नृत्य ही मेरा सम्पूर्ण जीवन और मेरा संसार है नृत्य प्राण है मेरा और घुंघरुओं में मेरी सांसे चलती है