सरगुजा| छत्तीसगढ़ के सरगुजा के हसदेव अरण्य के जंगलों की पेड़ों की कटाई शुरू की गई है जिसे लेकर वहां के स्थानीय निवासी आक्रोशित हैं| गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के युवा मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष लाखन सिंह गोंड ने बताया कि हसदेव परसा कोल ब्लॉक को लेकर वहां के स्थानीय ग्रामीण और आम जनता आदिवासी जनजाति समाज लगातार विरोध कर रहे हैं, जिसके बावजूद भी वहां अंधाधुन वृक्षों की कटाई की जा रही है| कुछ महीने पहले आदिवासी समाज 300 किलोमीटर पैदल चलकर राजधानी रायपुर पहुंचकर राज्यपाल ,मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति तक ज्ञापन के माध्यम से वह के अपनी जल जंगल जमीन कि समस्याओं को पहुंचाएं| जिसके बावजूद भी आज वहां के स्थानीय निवासियों को विस्थापित होकर दूसरी जगह जाने पर मजबूर किया जा रहा है|
जल जंगल जमीन पर निर्भर रहने वाले आदिवासी समाज के साथ सभी वर्ग के लोगों के जीवन पर सीधा असर पड़ेगा| वहां के स्थानीय जल वायु प्रदूषित होगी जिस वजह से वहां के किसानों की कृषि भूमि भी प्रभावित हो जाएगी| जल का स्तर नीचे गिर जाएगा जिस वजह से स्थानीय निवासी हसदेव कोल ब्लॉक का विरोध कर रहे हैं| जिस पर उचित कार्रवाई करते हुए यहां के अंधाधुन वृक्षों की कटाई को रोका जाए| आदिवासी जनजाति के लोग अपनी परंपरा संस्कृति विरासत को संजोए रखने के लिए वनों पर आधारित जीवन को जीने के लिए प्रतिबद्ध है| परंतु कारपोरेट घरानों की नजर हमारे जल जंगल जमीन पर पड़ चुकी है और इस देश में शासन प्रशासन कानून व्यवस्था सविधान होने के बावजूद भी आज आजाद भारत में यह स्थिति देखने को मिल रहा है|छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने अदानी को यहां से कोयला निकालने का ठेका दे दिया है, आदिवासी 3 साल से इसका विरोध कर रहे हैं| पचासी परसेंट ग्रामीणों ने मुआवजा तक नहीं लिया|
ग्रामीणों का आरोप है कि इस परियोजना के वन भूमि डायवर्सन की प्रक्रिया में फर्जी ग्राम सभा दस्तावेज प्रस्तुत कर वन सुकृति हासिल की गई है| साल्ही हरिहरपुर और फतेहपुर जो परियोजना से प्रभावित गांव है इनकी ग्राम सभाओं ने वन भूमि डायवर्सन के प्रस्ताव को कभी भी सहमति नहीं दी| कंपनी की लगातार दबाव के कारण बार-बार ग्रामसभा किया गया जिसमें ग्रामीणों के द्वारा बार-बार विरोध दर्ज हुआ, जिसके बाद भी फर्जी तरीके से स्वीकृति हासिल की गई| विधानसभा चुनाव 2018 के पहले इसी इलाके में आकर कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने आदिवासियों को भरोसा दिया था कि वे उनके संघर्ष में साथ हैं,लेकिन कांग्रेस पार्टी के सरकार ने आदिवासियों के विरोध और विशेषज्ञों की रिपोर्ट को किनारे कर अडानी के एमडीयू वाले खदान को अंतिम स्वीकृति दे दी| पिछले एक दशक से हसदेव के आदिवासी संविधान की पांचवी अनुसूची पेशा कानून 1996 और वन अधिकार मान्यता कानून 2006 द्वारा ग्राम सभाओं को प्रदत्त अधिकारों के माध्यम से हसदेव अरंडय जैसे सघन वन क्षेत्र में प्रस्तावित कोयला खनन परियोजना का विरोध करते आ रहे हैं|
सरगुजा जिले में प्रस्तावित प्रसाद खदान की पर्यावरणीय स्वीकृति वन स्वीकृति एवं भूमि अधिग्रहण की प्रक्रियाओं में हो रही गड़बड़ियों और नियम विरुद्ध कार्यों पर भी प्रभावित आदिवासी समुदाय ने लगातार अपनी आपत्तियां दर्ज कराई है| वर्ष 2017 से ही इस परियोजना हेतु स्वीकृति की प्रक्रिया शुरू हो गई थी और लगातार ग्रामीणों ने इन प्रक्रियाओं का विरोध किया| इलाके के आदिवासी लगभग 2 महीनों से अनिश्चितकालीन धरना पर बैठे हुए हैं इस बीच कोयला खनन के समर्थन का अभियान शुरू किया गया| सरगुजा में परसा खदान शुरू करवाए जाने के पक्ष में लोगों को जुटाया गया साथ ही कलेक्टर और राज्यपाल को पत्र लिखकर बकायदा खदान शुरू करवाने की मांग करते हुए लोगों को बयान और अंबिकापुर में रैली निकाली गई इस तरह से अगर किया गया तो 15 वर्षों तक निकालने वाली कोयले की समाप्ति 7 वर्षों में हो जाएगी| 23 दिसंबर 2021 को केंद्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वन सलाहकार समिति द्वारा लिया गया निर्णय पर स्पष्ट रूप से खनन कंपनी के उस प्रचार का असर नजर आता है जो उसने पिछले 1 वर्ष में मीडिआ के जरिए तैयार किया|
दरअसल किसी भी खनन परियोजना की स्वीकृति के आधार पर माइनिंग प्लान एवं सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है|वैज्ञानिक अध्ययन के साथ जमीन में उपलब्ध कोयले की मात्रा को संबंध निकालने का पूरा खाका खनन कंपनी द्वारा प्रस्तुत किया जाता है जिसे कोयला मंत्रालय स्वीकृत करता है| महत्वपूर्ण है कि यह एक ऐसी परियोजना है जिसकी वन स्वीकृति निरस्त होने और सुप्रीम कोर्ट द्वारा खनन जारी रखने की इस आदत को आधार बनाकर ना सिर्फ इसकी उत्पादन क्षमता 10 से 15 मिलियन टन गई बल्कि न्यायालय के अंतिम आदेश के पूर्व ही दूसरे चरण की खनन योजना को भी स्वीकृति जारी कर दी गई|
न्यायालय में लंबित मामले की अपने पक्ष में व्याख्या का यह अनूठा उदाहरण है 24 मार्च 2014 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा परियोजना की स्वीकृति निरस्त करने के आदेश के खिलाफ राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 28 अप्रैल 2014 को ईसटे आदेश जारी किया था| बहुत सारी संवैधानिक नियम कानून को ताक में रखकर यहां सुकृति प्रदान की गई इसके विरोध में स्थानीय ग्रामीण और जनजाति समूह के सूत्र में आकर विरोध दर्ज कर रहें हैं|